kanchan singla

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शिक्षित लड़कियां

एक आंधी सी उठी थी कहीं
जब थामा था उसने कागज़ और कलम को
समंदर में उठा था कहीं सैलाब
जब एक कदम दहलीज से बाहर निकाला था उसने
सारे सोए हुए भ्रम जाग गए थे कहीं
जब पहला अक्षर अपने नाम का लिखा था उसने
सारी बंद आखें अब खुल चुकी थी
जब बस्ता कंधे पर आया था उसके
सारी उंगलियां एक साथ उठी थी
जब पहली बार खिलखिला कर हंसी थी वो
सब अचंभित से ताकते रह गए
जब उसने अंगूठे की छाप छोड़ कलम को थामा था
जाने कितने लबों से कितने बोल निकले थे
जब बंधे बालों को खुली हवा में लहरा दिया था उसने

किताबों को सीने से लगा
आखों में सपनों का गुबार लिए
वो बढ़ चली थी
अनसुना कर हर तंज को
किताबों में खो गई
लोगो को लगा इश्क में पागल हो गई
एक दिन वो लौटी उसी दहलीज पर
मीठी सी गर्वित मुस्कान लिए
सादा सी साड़ी और हाथ में कलम की पहचान लिए
शिक्षित होकर लौटी थी
शिक्षा का प्रचार करने
वो बेटी लौटी थी जो थी
एक डॉक्टर, एक अध्यापिका
ना जाने क्या क्या बनकर लौटी थी
आज भी लौट रही हैं ऐसे ही
कितनी ही बेटियां
तोड़कर हर तंज की दीवारों को
लाज, हया के पहरों को
समझ रहीं हैं अपने हक को

वो अल्हड़ सी लड़कियां अब
बड़े अदब से जीती हैं
तोड़ गुलामी की जंजीरों को
छोड़ सड़ चुकी मानसिकताओं को
नयी पहचान संग, नए मुकाम बनाती है
अब हर लड़की शिक्षित होना चाहती है।।

- कंचन सिंगला ©®

लेखनी प्रतियोगिता -23-Jul-2022

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9 Comments

Seema Priyadarshini sahay

24-Jul-2022 01:57 PM

Nice post 👍

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Reyaan

24-Jul-2022 01:36 AM

शानदार

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Shnaya

24-Jul-2022 01:09 AM

बहुत खूब

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